Saturday, February 13, 2021

तब्दीली

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दुनिया के इस पस-ओ-पेश से
डरना - घबराना छोड़ने लगे
                  कमसिन  जब समझदार हुए
                  हक़लाना - तुतलाना छोड़ने लगे

ज़रूरत के समय जो छोड़ गया ज़माना
मग़रूर थे.. वो भी ज़माना छोड़ने लगे
                 लड़खड़ाते क़दमों की रुसवाई से तंग आकर
                 लोग  आबाद  हुआ  मयख़ाना  छोड़ने  लगे

ख़ुद की ही अच्छाई ने जब ठग लिया उन्हें
तो वो मुफ़लिसों पर तरस खाना छोड़ने लगे
 
जब मालूम हुआ..हर महफिल में
वही शेर..हर बार.. उसी अदा से
पढ़ने का उनका हुनर
हम उनके उस शेर पर मुस्कुराना छोड़ने लगे

इल्म हुआ जब.. कि मंज़िल तो बरहक़ है
साज़-ओ-सामान के साथ सफर पर जाना छोड़ने लगे

देखा है.. महलों की ख़्वाहिश में अक्सर
लोग बसा-बसाया आशियाना छोड़ने लगे
                  दीवार-ओ-दरों  को ग़मगीं कर
                  पंछी जब आज़ाद हुए क़ैदखाना छोड़ने लगे


ज़ख़्म जब-जब  नासूर हुआ
सब उस पर दवा लगाना छोड़ने लगे
                   आँखों से काजल के चोरी होने का सुन
                   वो अपनी आँखों में सुरमा लगाना छोड़ने लगे

                   ब-दस्तूर रूठे रहने को आदत मान
                    वो अब हमें मनाना छोड़ने लगे

तब्दीली    - बदलाव           मग़रूर - घमण्डी
मुफ़लिसों - गरीबों              बरहक़ - अटूट सच
ग़मगीं  -    दुःखी                 -दस्तूर - यथावत

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