Sunday, May 17, 2020

तो आ....

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आराम... मेरी फितरत ही नहीं,
थककर चूर होने तलक संग मेरे चल सके...
तो आ..!!

मिसरे.. क़ाफिए.. रूबाई.. का इल्म नहीं मुझे,
तू मेरी गज़ल के अशार समझ सके...
तो आ..!!

लड़खड़ाना.. तो है आदत मेरी,
तू सम्भलने से ज्यादा मेरे संग गिर सके...
तो आ..!!


किनारे खड़े होकर मदद की पेशकश??
नहीं... नहीं.. नहीं..,,
तू भँवर में मेरे संग डूब सके...
तो आ..!!

खुशियों में तो ज़माना साथ हो आता है,
रात की तन्हाईयों में मेरे संग, तकिया भिगो सके...
तो आ..!!



सुन..!!
ये फूलों से लदा बग़ीचा.. मुझे रास नही आता,
तू मेरे लिए काँटे बो सके... तो आ..!!


सजदों से पूरी इबादत तो कर.. आया हूँ मैं...
अपनी दुआओं में तू मुझे पढ़ सके... तो आ..!!

कालिख़-सा हूँ, हर कोई दामन बचाना चाहे मुझसे,
तू काजल-सा अपनी आँखों मे सजा सके...
तो आ..!!


जानता हूँ, कुछ बेमिला...कुछ सनकी-सा हूँ मैं,
तू मेरी सनक  को अपने आँचल मे सँजो सके...
तो आ..!!

ये इत्र की बारिश़.. मुझ पर लाख़ करें दुनिया,
तू मेरी कस्तूरी को खोज़ सके... तो आ..!!
तू मेरी कस्तूरी को खोज़ सके... तो आ..!!

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1 comment:


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