अपने दिन का हर एक हिस्सा,
कल तक मुझसे बाँटा करता था
मेरी यादों में अक्सर जो...
रातों को जागा करता था
अपने तकिये को हम दोनों ने
एक-दूजे के नामों से नवाज़ा था
दीवानगी की हद थी वो तो...
समझदारी से कौनसा तकाज़ा था !!
मेरी एक-एक तस्वीर को वो बुद्दु,
ना जाने कितनी ही बार निहारा करता था
मेरी आँखों से अक्सर वो...
मेरी रूह तक झाँका करता था
हर लम्हें मे सपने बुनना
उसको अच्छा लगता था
प्यार भरे हर तराने में
बस वो मुझे महसूस करता था
कई दिनों से मेरी उससे
बात नही हो पाई है...
ख़ता इसमें उसकी नहीं कोई
शामिल इसमें मेरी ही मनाई है
क्या करती फिर...??वो नहीं समझता!!
ज़िन्दगियाँ अब है बदली हुई...
सपने थे सुनहरे कल तक जो
धुँध उन पर अब है चढ़ी हुई
ख़फा है... नफरत कर नहीं पाता
वो मुझसे ज़्यादा दिन नाराज़ रह नही पाता
पर उसकी ज़रा सी नाराजगी भी
कई नफरतों से भारी है...
मै सहन नहीं कर पाती इसको
आँखों से चश्में जारी है
उसके वो लम्बे पैग़ाम
मुझे बहुत याद आते हैं
भरी महफिल में भी अक्सर
मुझे तन्हा महसूस कराते हैं
कब खाता होगा... कब पीता होगा...
क्या वो अब भी चैन से जीता होगा..?
कब उठता होगा... कब सोता होगा...
क्या वो भी छिप-छिपकर रोता होगा..?
अपने दोस्तों से जब भी
मेरा ज़िक्र वो करता होगा
क्या "बेवफा" जैसे नामों से
वो सम्बोधन करता होगा !!
आधी रात में जब भी
उसकी नीन्दे टूटा करती होंगी
मेरी यादें उस पागल को
सोने नहीं दिया करती होंगी
अपने खाली वक्त में कल तक
जो 'परी' को निहारा करता था
अपने पसंद के नेता पर जो
शान बघारा करता था
आज की तारीख में वो
पुराने msgs पढ़ता रहता है
बस SS देखा करता है
और आँखों को नम करता रहता है
मेरे हिस्से का छोड़ो अब तो
अपने हिस्से से भी कम हँसता होगा
क्या अब भी मरता होगा मुझ पर वो !!
क्या मुझसे अब भी "इश्क़" करता होगा..??
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